(एन.आई.टी. ब्यूरो), प्रयागराज
प्रयागराज। अखाड़ों के संतों जीवन में ध्यान और ज्ञान आम है। भोजन की व्यवस्था के भी अपने विधान हैं। संत गण इसे हरि को प्राप्त करने का माध्यम बताते हैं। किसी की क्षुधा मिटाना परम पुनीत कार्य है। श्रीनिरंजनी अखाड़ा के मुखिया भंडारी स्वामी नरेश्वर गिरि कहते हैं-भोजन करिअ तृपिति हित लागी। जिमि सो असन पचवै जठरागी। असि हरि भगति सुगम सुखदाई। को अस मूढ़ न जाहि सोहाई। अर्थात जैसे भोजन किया तो जाता है तृप्ति के लिए, उसे जठराग्नि अपने आप पचा डालती है, ऐसी सुगम और परम सुख देने वाली हरि भक्ति जिसे न सुहावे, ऐसा मूढ़ कौन होगा? जिसे यह जिम्मेदारी दी जाती है वह भंडारी बाबा का संबोधन प्राप्त करता है। भूखे का पेट भरने को भंडारी बाबा अपनी तपस्या मानते हैं। स्वामी नरेश्वर बताते हैं कि हर मनुष्य में ईश्वर का वास है। उन्हें भोजन करवाकर तृप्त करने से ईश्वर को तृप्ति मिलने की अनुभूति होती है। दौर बदला। रहन-सहन बदला। लोगों के व्यवहार में परिवर्तन आया। अगर कुछ नहीं बदला तो वह है अखाड़ों की कार्य संस्कृति। सदियों पुरानी परंपरा को अखाड़े जीवंत बनाए हैं। जिस पर उन्हें अभिमान है। उन्हीं परपंराओं में एक है भंडारी बाबा का पद। हर अखाड़े में भंडारी और कोठारी होते हैं। कोठारी खाने-पीने के सामानों का प्रबंध करते हैं। उन समानों से स्वादिष्ट व्यंजन बनाने का जिम्मा भंडारी बाबा निभाते हैं। समस्त अखाड़ों के आश्रम में तीन से चार भंडारी होते हैं। वहीं, कुंभ व महाकुंभ में लगने वाले शिविर में इनकी संख्या आठ से 10 कर दी जाती है। एक संत सबसे ऊपर होते हैं उन्हें मुखिया भंडारी कहा जाता है। सभी ब्राह्मण संत होते हैं। मुखिया भंडारी की अनुमति के बिन अखाड़े में चूल्हा नहीं जलता। अगर किसी को भोजन चाहिए तो उसे भंडारी बाबा से आग्रह करना पड़ेगा। अपने से कोई रसोई में घुसकर न कुछ बना सकता है, न ही निकाल सकता है। अनुशासन और विशेष कार्य-शैली उन्हें औरों से अलग करती है। परीक्षा में उत्तीर्ण होने पर बनते हैं भंडारी अखाड़े का भंडारी बनना आसान नहीं है। भंडारी वेद-पुराण के ज्ञाता होते हैं, क्योंकि भोग लगाते समय मंत्रोच्चार करना पड़ता है। अखाड़े के सभापति अथवा सचिव उनके ज्ञान की परीक्षा लेते हैं। इसमें अलग-अलग धर्मग्रंथों के बारे में पूछा जाता है। तमाम मंत्रोच्चारण कराए जाते हैं। साथ ही उनके खाने-पीने की रुचि देखी जाती है। सबमें खरा उतरने पर भंडार की जिम्मेदारी मिलती है। छह माह का मिलता है प्रशिक्षण भंडारी बाबा को छह माह तक भोजन बनाने का प्रशिक्षण दिया जाता है। नशा करने पर मिलती है सजा नशा करके कोई भोजन बनाते पकड़ा जाता है तो उसे सजा मिलती है। सजा के तहत पूरे आश्रम की सफाई, अगर ठंड है तो भोर में किसी पवित्र नदी में 108 बार डुबकी लगाकर स्नान और खुले आसमान के नीचे खड़े होकर अखाड़े के आराध्य के नाम का 551 माला जप करना। अगर गर्मी का मौसम है तो स्नान करके कड़ी धूप में बैठकर अखाड़े के आराध्य के नाम का 551 माला जप करना पड़ता है। ऐसे संतों को भंडार से हटाकर दूसरे कार्यों में लगाया जाता है
